काल के कपाल पर जो लिखता मिटाता था
|काल के कपाल पर जो लिखता मिटाता था,
जीवन के हर क्षण में गीत नया गता था
जो कर सके पराजित ऐसे था कौन,
क्या हो गया है उसको क्यों हो गया है वो मौन..
था जो अजेय आज कही खो गया,
माँ भारती का सपूत चिर निंद्रा में सो गया
शायद इसलिए आज चाँद धरती का आसमा में खो गया
उसकी सख्शियत को सराहता नहीं कौन,
क्या हो गया है उसको क्यों हो गया है वो मौन ..
उसने सबको साथ चलना सिखाया,
मन मिले न मिले दिल मिलना सिखाया
करुणा का था वो सागर, ऐसा था कौन,
क्या हो गया है उसको क्यों हो गया है वो मौन.
पोखरण करके एहसास दिलाया दुनिया को,
भारत क्या है उसकी शक्ति ये बतलाया दुनिया को
कारगिल में छद्म युद्ध का हल बतलाया दुनिया को, क्या क्या कर सकता है भारत ये दिखलाया दुनिया को
जो न जाने अखिल विश्व में ऐसा है कौन,
क्या हो गया है उसको क्यों हो गया है वो मौन ..
आज कितने दिनों बाद झलक दिखा के सो गया, आँखों के आगे आकर फिर से ओझल हो गया
मौत से जिसने ठाना था की जीतेगा कौन, क्या हो गया है उसको क्यों हो गया है वो मौन ..
भावभीनी श्रद्धांजलि
विनीत शर्मा (इलाहाबाद)
Sharmavineet035@gmail.com