8 MARCH, INTERNATIONAL WOMEN’S DAY – महिला दिवस
|Bhavesh K Pandey, Editor |
ये महिला दिवस, सशक्तिकरण, Womens Day शहर की कहानियाँ है जो हर साल किसी शार्ट फिल्म, पोस्टर या महिलाओं के लिए विशेष रूप से छूट वाली बड़ी बड़ी दुकानों से शुरू होती है और रात में whatsapp पर आये Happy Womens Day वाले संदेशों को थैंक्यू, गुड नाईट कह कर ख़त्म हो जाती है, यह दिन भी सामान्य दिनों जैसा ही होता है बस इसमें गुलाबी रंग थोडा ज्यादा होता है, चाहे आर्चीज के दूकान पर, कपडे के शोरूम पर या फिर मोबाइल के वॉलपेपर पर |
इस दिन भी लोग मिलते हैं लेकिन एक मीठे से महिला दिवस की शुभकामना सन्देश के साथ, हर बार लगता होगा शायद कुछ बदलाव होंगे, कुछ हम बदलेंगे, कुछ वो बदलेंगे, लेकिन कहाँ कुछ हो पाता है बस रात होती है और सूर्य अस्त के साथ महिला दिवस भी ख़त्म हो जाता है |
हम उसी समाज में रहते हैं जहाँ हम महिलाओं को पूजते भी हैं और दहेज़ के लिए मारते भी हैं, हम उन्हें अर्धांगिनी भी मानते हैं और बोझ भी और कोई तो बाहर की दुनिया देखने से पहले पेट में ही मार दी जाती है, कसूर बस इतना है कि इस समाज ने उन्हें आधी आबादी कहा तो है लेकिन माना नहीं है |
गाँव में तो उसे आज भी गोबर अकेले ही पाथना है, उसे अकेले ही दूर गाँव से पानी लेने जाना है, धुंए से भरा चूल्हा जलाना है, खेत में फसल काटने भी जाना है, मजदूरी भी करनी है लेकिन फिर भी उस गाँव में तो शायद उसे अभी आधी आबादी का दर्जा भी नहीं मिल पाया है |
महिला दिवस मनाइए, शौक से मनाइए लेकिन अगर सच में महिलाओं को सशक्त बनाना है तो उन्हें जिन्दगी का हिस्सा बनाइये, उन पर विश्वास कीजिये |