ज़िन्दगी एक सफर है सुहाना
|माँ के पेट में जन्म लेने से लेकर शव-शैया पर जाने तक के बीच में सामाजिक विकारों और मोह-माया में उलझे रहने और विलासिता पूर्ण जीवन यापन करने के चक्कर में दूसरों की ख़ुशी में अपना पूरा समय निकाल देना, उस समय को नाम दिया ‘ज़िन्दगी’ या ‘जीवन’। इस समयावधि में हम कैसा काम करते हैं इसी के आधार पर लोग हमें हमारे मरने के बाद याद रखेंगे। किसी महापुरुष ने कहा है की “अगर अमर होना है तो केवल दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा और किसी की ख्वाहिशे पूरी करके देखो, तुम मरने के बाद भी लोगों की यादों में अमर हो जाओगे।”
हमारी इस दैनिक दिनचर्या में केवल पैसे के पीछे भागते जा रहें है, पैसा ही आजकल जीवन का प्राथमिक आधार है लेकिन इसको ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य बनाना तो गलत है ना !! उदाहरणतया कोई व्यक्ति खूब पैसे कमा रहा है उसे अपने बच्चों की शादी करनी है, बड़ा घर भी बनवाना है, सबको एक शान की जिन्दगी देनी है। इन सपनो को पूरा करने के लिए दिन रात एक करके पैसे कमा रहा है, परिवार वाले भी परेशान की पैसो के पीछे कितना पागल है, अपना कुछ समय परिवार वालों के साथ बिताने की जगह हर समय केवल पैसा ही बनाने में लगा हैं। अब ऐसी अवस्था में या तो वो पागल हो जाएगा या अपने परिवार वालों के प्यार से वंचित हो जाएगा, क्या पता इस चिंता में बच्चों की शादी करने, बड़ा घर बनाने से पहले ही उसका जीवनकाल समाप्त हो गया तो…
ऐसे में तो यही स्थिति हो गयी, ” दुविधा में दोऊ गए, ना माया मिली ना राम !”
धन अर्जित करना बुरा नहीं है, इसके बिना तो कुछ भी संभव नही है लेकिन रिश्तों, समाज और अपनों की खुशियों से समझौता करते हुए नहीं।
आपके विचारो से हम सहमत हैं !
धन्यवाद !
very true !!!